बाजार के आज कल बड़े समाचार मिल रहे हैं
गली मोहल्ले में कई नामी पत्रकार मिल रहे हैं
जनमानस से जुड़े समाचार मात्र एक काॅलम
विज्ञापनों से भरे सब बड़े अखबार मिल रहे हैं
अब पेड न्यूज खा रही है अखबार के पूरे पन्ने
समाज नहीं सिर्फ पैसों के सरोकार मिल रहे हैं
समाचारों पर हावी हो गया लाखों का विज्ञापन
प्रबंधन के आगे संपादक भी लाचार मिल रहे हैं
जगाता नहीं है कोई समाचार अब प्रशासन को
जन हित के आज समाचार शब्द चार मिल रहे हैं
पत्रकारिता का माहौल ही बदल गया है रविन्द्र
पत्रकार-संपादक भी पैसों के पैरोकार मिल रहे हैं
अब पत्रकार भी कमीशन पर कर रहे हैं काम
संपादक पेड न्यूज ही के तलबगार मिल रहे हैं
जन पीड़ा के लिए नहीं एक काॅलम का स्पेस
विज्ञापन आगे लाचार जन समाचार मिल रहे हैं।।