मानता हूँ कि तू अब मेरी नहीं
मगर निगाहें ढूंढती हैं तुझे यहीं कहीं
आज सोते वक्त तुझे याद करता हूँ
संग बिताए पलों से खुद को आबाद करता हूँ
लौटा आता हूँ सुबह फिर वहीं
मानता हूँ कि तू अब मेरी नहीं
मगर निगाहें ढूंढती हैं तुझे यहीं कहीं
रिश्ता कितना लंबा रहा यह जरूरी नहीं
जितना जिया संग उससे तो जिन्दगी अधूरी नहीं
लग जाता हूँ बुनने फिर कहानियाँ नईं
मानता हूँ कि तू अब मेरी नहीं
मगर निगाहें ढूंढती हैं तुझे यहीं कहीं
तेरी बातें याद कर छा जाता है तिलिस्म
एकदम ठंडे पानी से नहा जाता है मेरा जिस्म
यह तो ख्व़ाब है हकीकत तो नहीं
मानता हूँ कि तू अब मेरी नहीं
मगर निगाहें ढूंढती हैं तुझे यहीं कहीं
तेरा वो बात बात पर रूठना अच्छा था
कैसा भी था मगर अपना प्यार तो सच्चा था
मोहब्बत की थी तुमसे कोई छल नहीं
मानता हूँ कि तू अब मेरी नहीं
मगर निगाहें ढूंढती हैं तुझे यहीं कहीं
माना कि बदल गया हूँ थोड़ा दिल से
फासले तो मिटते ही हैं अक्सर मिल के
खुदगर्ज ही बन जाऊं ऐसा तो नहीं
मानता हूँ कि तू अब मेरी नहीं
मगर निगाहें ढूंढती हैं तुझे यहीं कहीं
आना है तो लौटा आ इंतजार में हूँ
याद है आपको आपका प्यार मैं हूँ
बसा लेते हैं आशियाना अपना दूर कहीं
मानता हूँ कि तू अब मेरी नहीं
मगर निगाहें ढूंढती हैं तुझे यहीं कहीं
रविन्द्र कुमार 'अधीर'
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