गद्दियों की नहीं अपने स्वार्थ की सोच रहे हैं नेता

वर्तमान में हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा और चम्बा जिला में गद्दियों का मुद्दा सुर्खियों में बना हुआ है। बने भी क्यों न? एक ऐसे सामुदाय के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री ने टिप्पणी की है जो आज तक अपनी संस्कृति को बचाए हुए है। गद्दियों ने आधुनिकता के दौर में भी अपनी पारम्परिक सभ्यता को नहीं छोड़ा, जहां जाएगा अपनी विशेष छाप छोडक़र आएगा। लेकिन फिर भी सामुदाय राजनीति तौर पर उपेक्षाओं का शिकार है। अगर गद्दियों के नेता राजनीति में भी हैं तो वह अपने स्वार्थ तक सीमित हैं। उनको तो सरकार से सिर्फ अपना स्वार्थ सिद्ध करना करना आम गद्दियों के लिए चाहे कुछ न हो, क्या सामुदाय ने इसी के लिए उनको अपना प्रतिनिधि बनाया था कि सिर्फ अपने हित साधे नहीं सामुदाय ने कई उम्मीदों के साथ जिम्मेदारी सौंपी थी, परंतु आज भी उन जिम्मेदारियों से इतर नेता अपने स्वार्थों को साधने में लगे हुए हैं, जो कि किसी भी रूप में सही नहीं है।
अब बात करते हैं मुख्यमंत्री के बयान के बाद जहां सामुदाय के लोग मुख्यमंत्री के खिलाफ सडक़ों पर उतर रहे है तो वहीं नेता कुछ गद्दी नेता मुख्यमंत्री के पक्ष में हजारों बातें कर रहे हैं, लेकिन सामुदाय पर धर्मशाला में हुए लाठीचार्ज पर किसी भी नेता ने अपनी कोई राय नहीं दी थी यह गलत हुआ है खास कर सत्ताधारी पार्टी से जुड़े नेताओं ने। विपक्ष ने तो अपने वोट बैंक को भुनाने के लिए कई तरह की बयानबाजी की, कुछ लोगों को साथ लेकर प्रदर्शन भी किए, लेकिन इतना करने से भोले-भाले गद्दियों का भला नहीं होने वाला। क्योंकि उनको जो सरकार या विपक्ष में प्रतिनिधित्व मिला है, वह सभी लगभग स्वार्थी लोग हैं और राजनीतिक पाॢटयों से जुड़े लोग हैं। वह तो गद्दी सामुदाय के वोट बैंक को अपने पक्ष में करने के लिए तरह-तरह की बातें करेंगे ही, पर क्या उन बातों से आम गद्दियों को कुछ मिल पाएगा। जहां तक मैं लिख रहा हूं या आप पढक़र समझ रहे है तो कुछ नहीं मिलेगा और वह राजनीति का शिकार होते ही रहेंगे। तो इन नेताओं की राजनीति से बचने का एक ही तरीका है..................

अपना दल बनाए गद्दी सामुदाय के लोग
इन राजनीतिक पार्टियों के शोषण का शिकार होने से बचने के लिए गद्दी सामुदाय के लोगों के पास एक ही तरीका है कि वह अलग से अपना राजनीतिक दल बना लें, जोकि इन सभी राजनीतिक पार्टियों से अलग हो। किसी भी राजनीतिक पार्टी का कोई राजनेता गद्दी पार्टी में शामिल न किया जाए, बेशक वह मूलत: गद्दी ही हो। पहले से किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़ा नेता है और सामुदाय ने उसको प्रमोट और सपोर्ट किया और फिर भी सामुदाय के लिए कुछ नहीं कर सकता है तो उसका पूर्णत: बहिष्कार किया जाए। अगर गद्दी सामुदाय सच में अपने सामुदाय का भला चाहते हैं तो उनको देर-सवेर यह कदम उठाना ही चाहिए।

सिर्फ पालमपुर से ही गद्दी नेता को टिकट देने की मांग क्यों?
हाल ही में हिमाचल प्रदेश कांग्रेस प्रभारी सुशील शिंदे हिमाचल दौरे पर थे। इस दौरान उन्होंने पालमपुर में भी गए तो जनसभा को भी संबोधित करना किया। लाजिमी है कि कांग्रेस का कोई बड़ा नेता वहां आया हो तो वहां कांग्रेस पार्टी से जुड़े गद्दी सामुदाय के नेताओं ने भी शिरकत की और अपनी मांगें उनके समक्ष रखी। इस दौरान मैं किसी नेता का नाम नहीं लूंगा, लेकिन कांग्रेस पार्टी से जुड़े गद्दी सामुदाय के एक नेता ने कांग्रेस प्रभारी के समक्ष पालमपुर से किसी गद्दी नेता को ही चुनावी टिकट देने की मांग रखी दी। अगर यूं कहा जाए कि उन्होंने अपने लिए ही टिकट की मांग की तो भी कोई अतिशियोक्ति नहीं होगीं, क्योंकि उसने सिर्फ पालमपुर का नाम लिया कि यहीं ऐसा किया जाए। तो कैसे मान लें कि उसने पूरे गद्दी सामुदाय की मांग रखी। अगर वह अन्य 7 विधानसभा क्षेत्रों के लिए भी ऐसी मांग रखते तो शायद कहा भी जा सकता था कि उन्होंने पूरे प्रदेश में मौजूद गद्दियों के लिए मांग की है, लेकिन जो उनकी मांग रही कहीं न कहीं सिर्फ स्वार्थ और अपने तक सीमित रही। अब गद्दी सामुदाय के आम लोगों को सोचना है कि उनको पूरे सामुदाय का साथ देने वाले नेता का चुनाव करना चाहिए या फिर सिर्फ एक ही नेता की स्वार्थ सिद्धि में अपने-आप को वोट के रूप में बलिदान करना है।

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