इश्क को इबादत मान बैठा हूँ
बस तुझे पाने की ठान बैठा हूँ
तेरा रूठ कर जाना अच्छा नहीं
लौट आएगी कभी जान बैठा हूँ
हमने क़समें खाईं साथ जीने की
रूठी तो धड़कन बंद है सीने की
इश्क में रूठने का सिलसिला है
मैं भी तो मनाने की ठान बैठा हूँ
मिलके जुदा हुए तो कैसे जिएंगे
लहू इश्क में कैसे हमराही पियेंगे
न खुद बेचैन हो न मुझे बेचैन कर
मुझे गले लगा ले बांहे तान बैठा हूँ
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