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घर में मार खाकर भी भारत को डराता पाक

भारत ने पहले 2016 को सर्जिकल स्ट्राइक कर आतंक के खिलाफ एक ऑपरेशन किया था, लेकिन उसमें सफलता नहीं मिली। परिणाम यह रहा कि आतंकी नासूर लगातार फैल रहा है। कश्मीर के कई हिस्सों को अपनी चपेट में ले रहा है। अब नासूर का एक ही उपचार है कि भारत दोबारा से कोई बड़ा ऑपरेशन करे, ताकि आतंक के नासूर का जख्म खत्म हो सके। सर्जिकल स्ट्राइक का जश्न मना कर हम लोगों में जोश तो पैदा कर सकते हैं, मगर बीमारी का जड़ से खत्म होना जरुरी है।


दो वर्ष पूर्व यानी 28 सितंबर 2016 में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सीमा में घुस कर सर्जिकल स्ट्राइक की। ऐसा करके सेना ने दिखा दिया कि वह देश और नागरिकों की सुरक्षा करने के लिए पूरी तरह से सक्षम है। दुश्मन को उसी की भाषा में जबाव देने की हिम्मत रखती है। यह सर्जिकल स्ट्राइक 18 सितंबर को जम्मू-कश्मीर के उड़ी सेक्टर में एलओसी पर भारतीय सेना के स्थानीय मुख्यालय पर हुए आतंकी हमले का जबाव था। हमले में 18 भारतीय जवान शहीद हुए थे। साथ में चार आतंकियों को भी सेना ने चार आतंकियों को भी मार गिराया था। हमले के ठीक 10 दिन बाद भारतीय सेना के कमांडो रात को तीन किलोमीटर भीतर तक पाकिस्तानी सीमा में घुसे, जैसा की सेना ने बताया था और पाकिस्तानी चौकियों को तबाह कर दिया। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद उड़ी हमले से देश के लोगों में पनप गुस्सा थोड़ा कम हुआ। देश के लोगों ने भारतीय सेना की सराहना और खूब पीठ थपथपाई। मगर उस दौरान कुछ राजनीतिक पार्टियों ने नेताओं ने सेना के पराक्रम पर भी सवाल उठाए और सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांगे। खूब राजनीति हुई। सत्ताधारी पार्टी ने सेना की कार्रवाई को अपनी उपलब्धि करार दिया और बड़े-बड़े होर्डिंगस लगाए ताकि राजनीति में इसका लाभ लिया जा सके। सर्जिकल स्ट्राइक के लगभग दो साल बाद जून माह में भारतीय सेना ने इस वीडिया सार्वजनिक किया। वीडियो में भारतीय सेना की उस कार्रवाई दिखाई गई कि कैसे पीओके में 3 किमी घुसकर आतंकवादियों को ढेर किया गया था। अब जब दो साल बीत चुके हैं तो आखिर सरकार को ऐसी क्या सूझी जो शिक्षण संस्थानों में सर्जिकल स्ट्राइक की वर्षगांठ मनाने को कहा। हालांकि बाद में सरकार ने अपने इस फैसले को बदल दिया था। 

सवाल यह उठता है कि आखिर हम एक सर्जिकल स्ट्राइक कर अपनी पीठ इतनी क्यों थपथपा रहे हैं, वो भी दो वर्ष बाद। कारण साफ है चुनाव आने वाले हैं, राजनीतिक फायदा भी तो लेना है। सर्जिकल स्ट्राइक को मैं एक असफल प्रयास मानता हूँ। क्यों? क्योंकि पाकिस्तान को उसकी छाती पर बैठ कर भी पीट दिया, लेकिन उसके हरकतें सुधरी नहीं हैं। उसने हमले करना भी नहीं छोड़ा। रोज भारतीय सीमा में गोलीबारी करता है। रोज भारतीय सैनिक शहीद होते हैं। पाकिस्तानी सेना थोड़ी चुप हो तो आतंकी सक्रिय हो जाते हैं। मतलब कि रोज कोई न कोई कायराना हरकत या फिर आतंकी हमला। भारतीय सेना की सर्जिकल स्ट्राइक का पाकिस्तान पर कोई असर नहीं पड़ा है। उसने अपना व्यवहार नहीं बदला है। पड़ोसी के साथ रिश्ते रखना भी नहीं सीखा। घर में मार खा चुका है। मगर पड़ोसी को डरा रहा है। भारत के एक राज्य के बराबर जनसंख्या है मगर भारत को डरा रहा है। उसकी कमजोर नहीं हुई। उसकी रिश्ते की नीति भी साफ नहीं हुई। उसने भारत में आतंकी भेजने बंद नहीं किए। घर से लेकर बाहर तक भारत के खिलाफ जहर उगल रहा है। यानी देखा जाए तो उसका रुख वही है जो सर्जिकल स्ट्राइक से पहले थे। आतंक की पनीरी तैयार कर रहा है और भारत भेज रहा है। तो फिर भारत की सर्जिकल स्ट्राइक कितनी सफल है? यह तब सफल होता जब पाक अपना व्यवहार बदल लेता। भारत में आतंकी भेजना बंद कर देता और जहर भी न उगलता। और भारतीय सेना में आतंकी हमले करवाना और गोलीबारी करना बंद कर देता। अब तक पाक पोषित आतंक और गोलीबारी एक नासूर बन चुका है। 
देखा जाए तो भारत को सर्जिकल स्ट्राइक पर मंथन करने की जरुरत है। जैसे एक चिकित्सक किसी बीमार व्यक्ति को उसकी नब्ज देखने के बाद पहले गोली देता। अगर उससे बीमारी ठीक न हो तो अपने उपचार के तरीके बदलता है। दवाईयां बदलता है और नए तरीके से उपचार देता है। अब तो नासूर का रूप ले चुका है। और नासूर का एक ही उपचार है। ऑपरेशन। भारत ने पहले को सर्जिकल स्ट्राइक कर आतंक के खिलाफ एक ऑपरेशन किया था, लेकिन उसमें सफलता नहीं मिली। परिणाम यह रहा कि आतंकी नासूर लगातार फैल रहा है। कश्मीर के कई हिस्सों को अपनी चपेट में ले रहा है। अब नासूर का एक ही उपचार है कि भारत दोबारा से कोई बड़ा ऑपरेशन करे, ताकि आतंकी के नासूर का जख्म खत्म हो सके। सर्जिकल स्ट्राइक का जश्न मना कर हम लोगों में जोश तो पैदा कर सकते हैं, मगर बीमारी का जड़ से खत्म होना जरुरी है।


ठंडी घुप अंधेरी रात की फिल्म

मेरी कल्पना के अनुसार उस रात को तो यही हुआ होगा ''ठंडी घुप अंधेरी रात... दुश्मन के रडारों की पकड़ से दूर... जैसे फिल्मों में दिखाया जाता है। आसमान में 30 जाबांज भारतीय कमांडो, रॉकेट प्रोपेल्ड गन्स, हथियारों से लैस...पैराशूट के जरिए हेलीकॉप्टर से आतंकी ठिकानों को नेस्तनाबूद करने का मकसद लेकर पाकिस्तानी इलाके में उतरते हैं। 35,000 फीट की ऊंचाई से तेजी से नीचे उतरते, पिन ड्रॉप साइलेंस, जमीन पर किसी को हल्की-सी भी भनक नहीं लगती। एलओसी के पार पाकिस्तानी बैरीकेड्स से रेंग-रेंग कर आगे बढ़ते। घातक जाबांज बिना कोई आहट दिए अपने टारगेट ठिकानों पर पहुंचे और फिर अचानक धमाके, स्मोक बमों से हर तरफ धुआं और गोलीबारी... और तबाही का मंजर... दुश्मन को खबर भी नहीं कि आखिर यह हुआ क्या? और अपने मकसद को पूरा कर वापस लौटते जाबाजों के चेहरों पर बदला लेना का वो सुकून साफ झलक रहा होगा।"
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