मुहब्बती तराने

तुम मुझसे जो हुए नाराज
न घुंघरू बजे और न साज
मुहब्बती तराने भी गुम हैं
बेवफा का दिया जो ताज
गर कोई थी हमसे नाराजगी
जाहिर तो कर देते एक बार
गैरों जैसा अपनों को तड़पना
ये तो नहीं है ना अपना प्यार
मुहब्बती तराने गूंजते थे जो
बिना किसी संगीत ओ साज
ऐसे निगाह क्यों फेर ली तुमने
क्या हुआ सनम को मेरी आज
देखो, मुहब्बत पर निगाह से
ख्याल आपका छीन बैठा चैन
तुम तो अब कभी आते नहीं हो
छलक जाते हैं बस मेरे ये नैन
गलतफहमियां थी दरमियां में
पर क्यों नहीं की तुमने वो दूर
कैसी वो चाहत है आपकी जान
जो करे बिछड़ने के लिये मजबूर 
थूक दो न अब गुस्सा दिल का
कुछ मैं आऊं कुछ तू आ करीब
मैं बन जाऊँ फिर से तेरा हबीब
तू भी बन जा रविन्द्र का नसीब

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